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यह हमारी बिडंबना है कि कभी किसी बात को प्रकाशित या उस पर जोर देने के लिए ऐसे संदर्भो का प्रयोग कर बैठते है जिससे सामाजिक, व्यक्तिगत ओर राजनातिक नुकसान उठाना पड़ता है। बीजेपी नेता दयाशंकर ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया, वो अपने आक्रोश को दिखाने के लिए ऐसा सन्दर्भ दे गए कि जिसकी निंदा ही नही कि जानी चाहिए बल्कि उनके खिलाप ठोस कारवाही भी होनी चाहिए, ऐसा इसलिए है की, हम कम से कम टीवी चेनलो पर तो ऐसे शब्दों का प्रयोग न करे। मायावती जी को बोले ये शब्द, बड़े गहरे आक्रोश को दर्शाता है न जाने क्यों वो इतने आक्रोशित है। पर जो हुआ सो हुआ, अब बात करते है इसके पीछे होने वाले हंगामे कि ये तो स्वाभविक था जिस तरह विगत वर्षो से सत्ता या जनता कि नजर में आने का कोई ठोस मुद्दा बसपा के पास न था मनो दयाशंकर कि जवान से निकला कोई विशेष चमत्कारी शब्द हो ओर अचानक प्रबलता से इस मुद्दे ने बसपा के सितारे बुलंद कर दिए और देश भर में आन्दोलन चल गया, इस पर इतना उग्र होने कि तो कोई आवश्यकता ही नहीं, इस पर वे मान हानि का मुकदमा कर सकती थी, खेर ये न होता तो हमे राजनीती को दोहरा चरित्र कैसे पता चलता।
राजनीती का दोहरा चरित्र
एक तो मायावती जी उनके लिए तुलनात्मक ढंग से प्रयोग किये गए शब्द पर हंगामा कर रहीं है, साथ ही, उसी प्रकार के लांखो असभ्य शब्दों का प्रयोग स्वयं ओर अपने समर्थकों द्वारा करवा रहि, तो वो शब्द, आपके द्वारा इस्तेमाल करने पर गलत नहीं है?
उनके कार्यकर्ता दयाशंकर के घर पर जाकर उनके परिवार को गालिया दे रहे हैं, तो क्या मायावती जी अब असहिष्णु नहीं हो रहीं हैं, दरअसल में यही राजनीति का दोहरा चरित्र है इसी को हम ठीक से नहीं समझ पाए, इसे क्रिया कि प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि क्रिया के ऊपर क्रिया कहते है, फलस्वरूप प्रदर्शनकारियों की भीड जमा हो गयी है ओर उस भीड़ में कुछ असामाजिक तत्वों को अपने उग्र पन दिखलाने का मौका मिल गया है। मायावती जी संसद में अपनी प्रतिक्रिया में, ये कहती है कि दयाशंकर ने मुझे नहीं अपनी माँ ओर बहन को गाली दि है, तो उनके लाखों कार्यकर्ता बीजेपी ओर उनके परिवारों को गाली दे रहे हैं तो इसका क्या अर्थ लगा लेना चाहिए। उन्हें इस बात का अहसास ही नही, वे अपने कार्यकर्ताओं को शांत भी नहीं करवा रहि है, यह एक बबाल तो हैं पर मायावती जी को एक दुरुस्त मुद्दा तो मिला, मैं दयासंकर के बयान का बिलकुल समर्थन नहीं करता पर यदि उनका बयान सीधे मायावती जी को नहीं दिया दया था परन्तु उनके काम की तुलना किसी के काम से करी थी परन्तु यह पर उन्होंने जो सन्दर्भ दिया वो उचित नहीं था। मैं भी यह उनके वेस्या शब्द का विरोध करूँगा। उनके द्वारा प्रयोग किया गया शब्द निराशाजनक है, उनकी सोच समाज के लिए कितनी गलत है, वेस्या, एक ऐसा पेशा है जिसमे ९८ फिसदी मज़बूरी है, ओर उनके प्रति हमारा ऐसा नजरिया उचित नहीं जहा हम उनके उत्थान कि बात करते हैं वही, कुछ लोग स्त्री कि गरिमा को ठेस पहुचाते है।
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